दिग्विजय की सक्रियता से भयभीत है भाजपा ?

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भोपाल // वैसे तो प्रदेश में नबंबर  में होने वाले विधान सभा चुनाव में भाजपा के लिए हिंदुत्व मुख्य मुद्दा है, पर वह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल की कमियों को जनता के बीच उजागर करने की भी तैयारी कर रही है और उसे 2003 के दिग्विजय शासन बनाम शिवराज शासन के रूप में पेश करना चाहती है। चुनाव की तैयारी में सब कुछ झोंक देने को आतुर भाजपा ने पिछले दिनों प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में यह लिया गया है । यह निर्णय भाजपा खेमे की घबराहट को दर्शाता है।

प्रदेश में पिछले 20 साल से भाजपा सत्ता में( इस बार के 18 महीने छोड़ कर) है तो ऐसे में अपनी सरकार की उपलब्धियों पर स्वतंत्र रूप से वोट ना मांग कर शिवराज सरकार की तुलना दिग्विजय सिंह सरकार की कोशिश को क्या कहा जाए?

राजधानी की राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि अभी तक कमलनाथ के 18 महीने के कार्यकाल को कटघरे में खड़ा कर रही भाजपा का चुनाव के 6 महीने पहले पूर्व मुख्मंयत्री के दो दशक पुराने कार्यकाल को निशाना बनाने का फैसला यूं हीं नहीं है। राजनीतिक पंडितों और भाजपा सूत्रों के आधार पर कहा जा सकता है कि जिस तरह की खबरें आ रही हैं , कि एंटी इंकम्बेंसी के चलते प्रदेश में कांग्रेस सरकार बना सकती है। भाजपा फिलहाल इसकी कोई मजबूत काट नहीं ढूंढ पाई है, और वह अपनी जीत के लिए दिग्विजय सिंह को कारगर मान रही है।

वैसे तो दिग्विजय सिंह हमेशा से ही भाजपा के निशाने पर रहते आए हैं, क्योंकि आमतौर पर उनकी तल्ख टिप्पणियां भाजपा और आरएसएस को नाराज करती रही हैं। भाजपा उन्हें मि. बंटाधार के रूप में प्रचारित करती रही है। उनके बयान भाजपा को कई बार धार्मिक ध्रुवीकरण करने में मदद कर चुके हैं, जिसका भाजपा चुनाव में फायदा भी उठा कर चुकी है । जानकारों का यह भी कहना है कि दिग्विजय सिंह के पूरे प्रदेश में समर्थक हैं , उनका विरोध करने पर पूरे प्रदेश से प्रतिक्रिया होती है ,जिससे स्थानीय स्तर पर भाजपा के पदाधिकारी व कार्यकर्ता सक्रिय हो जाते हैं।  इस तरह से वे राष्ट्रीय स्तर के नेता का विरोध करने का मौका पाए जाते हैं। इसलिए दिग्विजय का विरोध भाजपा को ज्यादा फायदेमंद लगता है।

दिग्विजय की सक्रियता से चिंता ?

इसके अलावा इस बार कांग्रेस आलाकमान लगातार हार रही लगभग 70 सीटों पर फोकस कर रही है और उसमें से लगभग सभी सीटों पर दावेदारी मजबूत करने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह को दी गई है। दिग्विजय सिंह पूरी सक्रियता के साथ लगातार इन क्षेत्रों में जाकर कार्यकर्ताओं, नेताओं से बात कर जमीनी हकीकत को जान परख रहे  हैं । उनकी इस कोशिश से कार्यकर्ताओं में उत्साह है और अनेक स्थानों पर जहां पार्टी मृत अवस्था में थी वहां भी कुछ सुगबुगाहट नजर आने लगी है। दिग्विजय सिंह के विरोधी भी उनकी नेतृत्व और संगठन क्षमता एहतराम करते रहे हैं। प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को दिग्विजय की सक्रियता ने चिंतित और भयभीत कर दिया है और उन्हें लगता है कि कहीं दिग्विजय की मेहनत भाजपा के सपनों को ध्वस्त न कर दे।  इसीलिए चुनाव में उनका फोकस कमलनाथ से हटकर दिग्विजय पर हो गया है।

भाजपा की यह कोशिश दिग्विजय के राजनीतिक कौशल को एक तरह से स्वीकार करती लगती है।

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