क्यों संकट में हैं वनराज ? सूबे में एक साल में 32 बाघों की मौत
भोपाल // पिछले दिनों पन्ना टाइगर रिजर्व में विक्रमपुर गाँव के पास एक युवा बाघ के शव के फंदे में लटके मिलने की हैरान करने वाली घटना सामने आने से एक बार फिर टाइगर स्टेट में बाघों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गये हैं . मध्य प्रदेश बाघों की मौत के मामले में भी देश में पहले स्थान पर है । राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ( नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी ) के आंकड़ों के अनुसार पिछले पिछले एक साल के दौरान पूरे भारत में 99 टाइगरों की मौत हुई हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 32 मौतें मध्य प्रदेश में दर्ज की गई हैं, मध्य प्रदेश में नवंबर के महीने तक 31 बाघों की मौत हुई थी, जबकि आज पन्ना टाइगर रिजर्व में मिले बाघ के शव के बाद यह आंकड़ा 32 पहुंच गया। पहली मौत मादा टाइगर की 8 जनवरी 2022 को बांधगढ़ में हुई थी। सबसे ज्यादा 66 टाइगरों की मौत बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दर्ज की गई हैं। ऐसे में बाघों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। बता दें कि पिछले साल ही दोबारा से मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला था, लेकिन टाइगरों की मौत के मामले में भी मध्य प्रदेश सबसे आगे है।
जबकि बाघों की मौत के मामले में देश में दूसरे नंबर के राज्य कर्नाटक में 14 और तीसरे नंबर पर रहे उत्तराखंड में इस वर्ष अब तक छह बाघों की मौत हुई है। यदि बाघों की मौत के आंकड़े देखें, तो पिछले चार साल में प्रदेश में 134 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 35 मामले शिकार के हैं। जबकि आपसी लड़ाई, कुएं में गिरने या सड़क दुर्घटना में 80 बाघ मरे हैं।
सुरक्षा नाकाफी ?
मध्य प्रदेश में बाघों की सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं। संरक्षित क्षेत्रों में बाघों की संख्या बढ़ी है पर सुरक्षाकर्मी नहीं बढ़ाए गए। बल्कि स्वीकृत पदों से कम कर्मचारी पदस्थ हैं। इस कारण पार्क और उससे सटे क्षेत्र में प्रभावी गश्त नहीं हो पा रही है। यही कारण है कि हर साल बाघों-तेंदुओं का शिकार होता है।
इस साल अब तक छह बाघों के शिकार की जानकारी सामने आई है। वहीं बाघों की बढ़ती संख्या भी सुरक्षा इंतजामों पर भारी पड़ रही है। बाघ, संरक्षित क्षेत्रों से बाहर निकल रहे हैं। जिससे उनकी सुरक्षा करना मुश्किल हो रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 के बाघ आकलन के अनुसार मध्य प्रदेश में 526, कर्नाटक में 524 और उत्तराखंड में 442 बाघ हैं।
मवेशियों के शिकार के कारण निशाने पर आते हैं बाघ
बस्ती से सटे जंगलों में सक्रिय बाघों का सबसे अधिक शिकार होता है। दरअसल, वे मवेशियों का शिकार करने के आदी हो जाते हैं। इसमें ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती है। ऐसे में मवेशी मालिक बाघ को जहर देकर, करंट लगाकर या फंदे में फंसाकर मार देते हैं। हालांकि ज्यादातर मामलों में शिकारी शाकाहारी वन्यप्राणियों के लिए करंट और फंदे लगाते हैं, जिनमें कई बार बाघ या तेंदुआ भी फंस जाते हैं।
अब ड्रोन से भी निगरानी
शिकार की घटनाओं को रोकने और संरक्षित क्षेत्र में अनाधिकृत प्रवेश रोकने के लिए प्रदेश के सभी छह टाइगर रिजर्व में ड्रोन से निगरानी शुरू कर दी गई है। पन्ना, बांधवगढ़, कान्हा, पेंच, सतपुड़ा और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व में इससे शिकार की घटनाएं कम हुई हैं पर पूरी तरह से रोक नहीं लगी है।
बाघों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार ने बाघ अभयारण्य बनाए हैं और भारत में कुल 53 बाघ संरक्षित क्षेत्र हैं। हालांकि मरने वाले बाघों का कुल आंकड़ा अभी बीते साल अक्तूबर तक दर्ज 104 तक पहुंच गया था। बाघों का शिकार की तलाश में आबादी वाले क्षेत्रों तक आना भी उनकी मौत की वजह बना है, बीते दिनों ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां बाघ आबादी वाले क्षेत्रों में आया है और उससे लोगों को नुकसान हुआ है।