इन दिनों टीवी पर बॉलीवुड के बजाय दक्षिण भारत की फिल्मों की भरमार है, इन फिल्मों में खूबसूरत हवेलियां और कलात्मक और परंपरागत गांव दिखाए जाते हैं ,आप जानते हैं यह हवेलियां कहां स्थित है ? और यह गांव कौन से हैं ? आइए आपको बताते हैं इसके बारे में-
जी हां ! यह हैं चेट्टियारों की हवेलियां । चेट्टियार दक्षिण भारत या कहें तमिलनाडु की व्यापारिक जाति है । यह मदुरै के करैकुड़ी के आसपास लगभग 72 गांव में बसे हुए हैं । इलाका चेट्टीनाड कहलाता है और यहां रहने वाले चेट्टियार।
कौन है चेट्टियार?
हवेलियों पर बात करने से पहले हम चेट्टियारो के इतिहास पर नजर डालते हैं। चेट्टियार चेट्टिनाड इलाके में रहने वाली व्यावसायिक जाति है । यह सदियों पहले नमक का कारोबार करते थे, फिर जवाहरात का कारोबार करने लगे। 19वीं सदी तक यह इलाके में बड़े साहूकार बन गए। पैसा उधार देने और ब्याज लेने लगे। 1826 में जब अंग्रेजों ने म्यांमार (वर्मा ) पर कब्जा किया तो चेट्टियार वहां गए और साहूकारी करने लगे, इससे दक्षिण पूर्व एशिया में बसने वाले चेट्टियार मालामाल हो गए, एक समय ऐसा आया कि इन देशों के स्थानीय लोग इनसे असुरक्षा महसूस करने लगे ।
इन चेट्टियारों ने विदेशों में कमाई अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा तमिलनाडु के अपने क्षेत्र में भव्य हवेलिया बनाने में खर्च किया।
चेट्टियारों की हवेलियाँ
चेट्टियारों की हवेलियां का स्थापत्य अपनी भव्यता , मन मोह लेने वाले रंगों और स्थानीय और विदेशी वास्तुशिल्प के मिश्रण या तालमेल की खूबसूरत मिसाल है। चटख रंगों का इस्तेमाल इन्हें और भी आकर्षक बना देता है। चेट्टियारों ने हवेलियों के निमार्ण में स्थानीय हस्तकला को बहुत अहमियत दी । विशेष तौर पर रंग-बिरंगे अंथगुड़ी टाइल्स और प्लास्टर और लकड़ी की स्थानीय नक्काशी को खूब बढ़ावा दिया।इसके साथ ही जापानी टेल्स और इटेलियन मार्वल का भी प्रयोग है .
कन्नाडुकाथन में स्थित राजा मुथैया की हवेली चेट्टियारों की हवेलियों की सुंदरता को समझने या परखने का आदर्श नमूना है । ऊंची दीवारें लंबे-लंबे बरामदे और बड़े-बड़े हाल चारों तरफ आता और झुकी हुई इलाहाबादी टाइल्स के अंदाज में बनी छत इन मकानों की खासियत है. अंदर बाहर दोनों तरफ बरामदे (कुछ-कुछ उत्तर भारत के पारंपरिक मकानों की तरह जैसे आंगन में लगी परछी हुआ करती थी और जिन में बैठी महिलाएं सब्जी भाजी काटने छापने को लेकर बड़ी पापड़ अचार बनाने जैसे दिन भर सारे काम बातचीत करते हुए निपटा लिया करती थी।) इस तरह इस हवेली में भी दोनों तरफ दुमंजले बरामदे हैं, बरामदे में सुंदर और गजब की फिनिशिग और चिकने खंबे। खम्बों पर ऊपर नीचे गजब की नक्काशी। घर के अंदर इस बरामदे से होकर ही जाया जा सकता है पहला हाल कुछ निजी किस्म का तो है, पर यहां परिवार के अलावा कुछ खास लोगों को भी आने की इजाजत होती थी। इन हवेलियों के हाल का निमार्ण यूरोपीय शैली और सजावट वाला होता हैं । अंग्रेजों के बंगलों के समान बड़ी बड़ी खिड़कियां।
इन भव्य हवेलियों को स्थानीय भाषा में “पेरिया वीडू” यानी बड़ा मकान कहलाते हैं।
चेट्टियार जहांअपनी हवेलियों के बाहरी बरामदों और हॉल की भव्य सजावट करते हैं , वहीं भीतरी हिस्सों में सादगी नजर आती है। घर की महिलाओं की सुविधा और निजता का ज्यादा ख्याल रखा जाता था क्योंकि घर के मर्द अक्सर विदेश में रहते थे, घर पूरी तरह से महिलाओं के हवाले हुआ करते थे।
अंथगुड़ी टाइल्स ?
चेट्टिनाड के मकानों के रंग-बिरंगे बेल बूते वाले फर्श खास किस्म के टाइल्स से बनते हैं । यह टाइल्स स्थानीय स्तर आथनगुड़ी गांव तैयार किए जाते हैं । इसलिए इसे अथंगुड़ी टाइल कहा जाता है
यह टाइल्स सस्ते मिलते हैं और डिजाइन के हिसाब से इनकी कीमत बढ़ती जाती है। इनकी खासियत है इनकी अलग किस्म की चमक होती है पर इनमें भड़कीला पन नहीं होता। यह टाइल्स किसी मशीन से नहीं बनते बल्कि इन्हें हाथ से तैयार किया जाता है। इसके लिए इलाके की साधारण मिट्टी इस्तेमाल होती है मिट्टी से बने यह टाइल्स एक कांच के तले वाले खास कांचे में रखकर धूप में सुखाया जाते हैं इन खातों में पहले से रंग भरे रहते हैं सूखने पर मिट्टी के स्टाइल पर कांच की सतह वाली डिजाइन बन जाती है।