केरल हाईकोर्ट ने कहा- नग्नता और अश्लीलता हमेशा एक नहीं होती..!

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कोर्ट ने अर्धनग्न शरीर पर बच्चों से पेंटिंग करवाने वाली महिला को किया बरी

कोच्चि // केरल हाईकोर्ट ने पास्को कानून से जुड़े एक मामले में महिला अधिकार कार्यकर्ता को बरी कर दिया! 33 वर्षीय रेहाना फातिमा नाम की इस महिला अधिकार एक्टिविस्ट के विरुद्ध बच्चों का यौन शोषण से संरक्षण (पॉक्सो ) कानून किशोर न्यायालय और सूचना एवं प्रौद्योगिकी कानून के तहत मुकदमा चल रहा था।

क्या है पूरा मामला?

 कुछ महीनों पहले रेहाना फातिमा का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वे अपने नाबालिग बच्चों के सामने अर्धनग्न (सेमी न्यूड) खड़ी थी और उन्होंने उन्हें अपने शरीर पर पेंटिंग की अनुमति दी थी।  इसका वीडियो वायरल होने के बाद उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था । रेहाना आरोपों का सामना कर रही थी । निचली अदालत ने फातिमा को दोष मुक्त करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था । फातिमा ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी । 

उच्च न्यायालय में फातिमा ने कहा था कि “बॉडी पेंटिंग” समाज के उस दृष्टिकोण के खिलाफ एक राजनीतिक बयान के रूप में थी, जिनमें सभी मानते हैं कि महिलाओं के शरीर का नग्न उपरी हिस्सा किसी भी रूप में यौन संतुष्टि या यौन क्रियाओं से जुड़ा है, जबकि पुरुषों के शरीर के निर्वस्त्र ऊपरी हिस्से को इस रूप में नहीं देखा जाता ।

उच्च न्यायालय ने क्या कहा ?

केरल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति कौसर एदाप्पागथ  ने फातिमा को आरोप मुक्त करते हुए कहा कि -आधी आबादी को अपने शरीर पर स्वायत्तता का अधिकार नहीं मिलता, अपने शरीर व जीवन के संबंध में फैसले लेने के कारण उन्हें परेशानी व दंड का सामना करना पड़ता है और अलग-थलग कर दिया जाता है।

 जस्टिस कौसर एदाप्पागथ ने कहा कि महिला कार्यकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप के आधार पर किसी के लिए यह तय करना संभव नहीं है कि बच्चों का किसी भी रूप से यौन संतुष्टि के लिए उपयोग हुआ है। उन्होंने बस अपने शरीर को कैनवास के रूप में अपने बच्चों को इस्तेमाल करने दिया था।  अदालत ने कहा कि अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का अधिकार महिलाओं की समानता और निजता के मौलिक अधिकार के मूल में  है।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसी” निर्दोष कलात्मक” अभिव्यक्ति को किसी भी रूप में यौन क्रिया से जोड़ना क्रूर है।  अभियोजन पक्ष ने अपनी दलील में इसे अश्लील और असभ्य बताया था । इस दलील को नकारते हुए अदालत ने कहा कि नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते।  नग्नता को अनिवार्य रूप से अश्लील , असभ्य या अनैतिक करार देना गलत है। अदालत ने कहा कि एक समय में केरल की निचली जाति की महिलाओं ने अपने स्तन ढकने के अधिकार की लड़ाई लड़ी थी। देश के विभिन्न प्राचीन और सार्वजनिक स्थानों पर तमाम देवी-देवताओं और प्रतिमाएं और कलाकृतियां हैं जो अर्धनग्न अवस्था में है उन्हें पवित्र माना जाता है । अदालत ने कहा कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो महिलाओं की नग्नता को कलंक मानते हैं और उसे सिर्फ यौन तुष्टी से जोड़कर भर देखते हैं । फातिमा द्वारा जारी वीडियो का मकसद समाज में मौजूद इस दौरे में मापदंड का पर्दाफाश करना था। न्यायालय ने कहा कि नग्नता को सेक्स के साथ जोड़ना नहीं जोड़ना चाहिए।

(नवभारत टाइम्स और एजेंसी खबरों के आधार पर )

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