नई दिल्ली//साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस गोरखपुर को दिया जाएगा यह फैसला रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने सर्वसम्मति से किया है लेकिन इस फैसले पर सवाल और विवाद उठने लगे हैं. कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस के चयन को पुरस्कार का अपमान बताया है।
इसको लेकर जयराम रमेश ने एक ट्वीट किया है। उन्होंने गीता प्रेस गोरखपुर को पुरस्कार देने की तुलना गोडसे को सम्मानित करने से की है। जयराम रमेश ने ट्ववीट में लिखा, “2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को प्रदान किया गया है जो इस साल अपनी शताब्दी मना रहा है। अक्षय मुकुल द्वारा इस संगठन के बारे में 2015 की एक बहुत ही बेहतरीन जीवनी है जिसमें वह महात्मा के साथ इसके तूफानी संबंधों और उनके राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चल रही लड़ाइयों का पता लगाता है। यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।”
जयराम के ट्वीट से कांग्रेस भी नाराज
सूत्रों का कहना है कि गीता प्रेस को लेकर जयराम रमेश के ट्वीट से कांग्रेस के कई नेता नाराज हैं। उन्होंने इस मामले में जयराम रमेश के बयान को गैर जरूरी बताया है।
सियासी बयान बाजी शुरू
गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने के एलान के बाद सियासी वार-पलटवार का दौर शुरू हो गया है. कांग्रेस की ओर से उठाए गए सवालों पर मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने जवाब देते हुए कहा है कि कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति को देश जान चुका है.
सांसद भाजपा सांसद रवि किशन ने इसे कांग्रेस की बीमार मानसिकता बताते हुए कहा है कि यह कांग्रेस की सनातन धर्म के खिलाफ मनोवृत्ति का परिचायक है भाजपा प्रवक्ता से शहजाद पुनेवाला, असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा और नेता रवि शंकर प्रसाद ने कांग्रेसको हिंदू विरोधी बताया है।
पुरस्कार राशि नहीं लेगी गीता प्रेस
गीता प्रेस की ओर से भी इस मामले पर बयान सामने आया है। उसकी ओर से कहा गया है कि वह केंद्र सरकार से इस पुरस्कार लेंगे लेकिन पुरस्कार के लिए मिलने वाली राशि नहीं लेंगे। बता दें कि इस पुरस्कार के साथ पुरस्कार के रूप में एक करोड़ रुपये की राशि भी दी जाती है।
100 पहले हुई थी स्थापना
बता दें कि गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना 1923 में हुई थी। यह अब तक 14 भाषाओं में करीब 42 करोड़ किताबों का प्रकाशन किया है। गीता प्रेस की पहचान प्रमुख रूप से भगवत गीता के प्रकाशन को लेकर है। गीता प्रेस की ओर से अब तक जिन पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है उनमें 16 करोड़ से अधिक श्गीरी मद भगवत गीता हैं।
गीता प्रेस के संस्थापकों और महात्मा गांधी के संबंध कैसे थे?
नवभारत टाइम्स के अनुसार गीता प्रेस की स्थापना 1923 में की गई थी। इसके संस्थापक जयदयाल गोयनका और गीता प्रेस की पत्रिका कल्याण के संस्थापक संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार के साथ महात्मा गांधी के करीबी संबंध थे। हालांकि छुआछूत और सांप्रदायिकता जैसे मुद्दों पर आगे चलकर महात्मा गांधी और गीता प्रेस के संस्थापकों के बीच मतभेद उभर आए। यह भी बताया जाता है कि 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद देशभर में जिन लोगों को हिरासत में लिया गया था, उनमें पोद्दार और गोयनका भी शामिल थे। हालांकि 1992 में पी वी नरसिंह राव सरकार ने हनुमान प्रसाद पोद्दार की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया था।
अक्षय मुकुल ने गीता प्रेस और महात्मा गांधी के बारे में क्या लिखा है?
अक्षय मुकुल ने ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया किताब लिखी है। मुकुल ने लिखा है, ‘पोद्दार 1926 में जमनलाल बजाज के साथ महात्मा गांधी के पास गए। वह कल्याण पत्रिका के लिए उनका आशीर्वाद लेना चाहते थे। गांधी ने उन्हें दो बातें कहीं। एक, विज्ञापन मत प्रकाशित करना। दूसरी, पुस्तक समीक्षा कभी मत छापना। पोद्दार ने ये सलाहें मान लीं। आज भी कल्याण और कल्याण कल्पतरु में न तो विज्ञापन छपता है और न ही पुस्तक समीक्षा छापी जाती है।’
मुकुल ने लिखा है, ‘गीता प्रेस और महात्मा के रिश्तों में खटास तब आने लगी, जब जाति और सांप्रदायिकता के मुद्दों पर गहरे मतभेद उभरे। इनमें मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश का मामला भी था और पूना पैक्ट भी। गांधी ने छुआछूत पर पोद्दार का नजरिया बदलने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। गांधी के खिलाफ पोद्दार की तीखी बातें कल्याण पत्रिका में 1948 तक छापी जाती रहीं।’
मुकुल ने अपनी किताब में लिखा है कि 1948 में गोयनका और पोद्दार की गिरफ्तारी के बाद ‘उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला ने इन दोनों की सहायता करने से मना कर दिया। जब सर बद्रीदास गोयनका ने इन दोनों का केस अपने हाथ में लिया तो बिड़ला ने इसका भी विरोध किया। बिड़ला का कहना था कि ये दोनों लोग सनातन धर्म को नहीं, बल्कि शैतान धर्म को बढ़ावा दे रहे हैं।’
महात्मा गांधी की हत्या पर गीता प्रेस का क्या रुख था?
1948 में हत्यारे नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को मार डाला। 30 जनवरी को हुई उस घटना से पूरा विश्व सिहर गया। दुनिया के तमाम नेताओं और संस्थाओं ने दुख जताया, लेकिन गीता प्रेस ने चुप्पी साध ली। अक्षय मुकुल ने अपनी किताब में लिखा है, ‘महात्मा की हत्या पर गीता प्रेस ने सोची-समझी चुप्पी साध ली। जिस व्यक्ति के लेख और आशीर्वाद कभी कल्याण पत्रिका के लिए बहुत महत्वपूर्ण हुआ करते थे, उनके बारे में अप्रैल 1948 तक इस पत्रिका ने एक शब्द भी नहीं लिखा। अप्रैल 1948 में पोद्दार ने गांधी के साथ अपनी विभिन्न मुलाकातों का जिक्र किया।’
मुकुल ने अपनी किताब में लिखा है, ‘हिंदू राष्ट्रवाद के दायरे में इसने हिंदुओं को संगठित करने, धार्मिक शुद्धता वाली पहचान बनाने और सांस्कृतिक मूल्यों का एक मानक बनाने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह 1923 से ही हर महत्वपूर्ण मोड़ पर हिंदू महासभा, जनसंघ और बीजेपी के विचारों के साथ खड़ा रहा है। जब भी समाज में तीखे सांप्रदायिक मतभेद उभरे, कल्याण पत्रिका ने एक धार्मिक पत्रिका की संजीदा भूमिका छोड़कर नफरत और धार्मिक पहचान की भाषा अपना ली।’
गीता प्रेस के बारे में पीएम नरेंद्र मोदी ने क्या कहा?
गीता प्रेस विश्व के बड़े प्रकाशकों में शामिल है। 14 भाषाओं में इसने करीब 42 लाख पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इनमें 16 करोड़ 21 लाख प्रतियां श्रीमद भागवत गीता की हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार 2021 मिलने पर मैं बधाई देता हूं। आपने पिछले 100 वर्षों में लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के लिए सराहनीय कार्य किया है।’ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी पीस प्राइज मिलने पर बधाई दी।
गांधी शांति पुरस्कार में कितनी राशि दी जाती है?
गांधी शांति पुरस्कार की शुरुआत 1995 में की गई थी। यह हर वर्ष दिया जाने वाला पुरस्कार है। इसे महात्मा गांधी के आदर्शों के लिए काम करने वाले लोगों या संस्थाओं को दिया जाता है। यह पुरस्कार किसी भी देश के किसी भी व्यक्ति या संस्था को दिया जा सकता है। पुरस्कार के रूप में एक करोड़ रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक स्मारक पट्टिका और हैंडलूम या हैंडीक्राफ्ट का एक परंपरागत आइटम दिया जाता है। इससे पहले यह पुरस्कार पाने वालों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और रामकृष्ण मिशन जैसे संगठन शामिल हैं। 2022 के लिए गांधी शांति पुरस्कार की घोषणा नहीं की गई है।
(मीडिया की ख़बरों के आधार पर)