नईदिल्ली // हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बड़ा ही अनोखा और विचित्र सा फैसला दिया जिसमें रेप केस के आरोपी को जमानत देने के मामले में कोर्ट ने लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग को आदेश दिया था कि 3 सप्ताह में पीड़ित युवती की कुंडली की जांच कर यह बताएं कि युवती मांगलिक है या नहीं। यह रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपी जाए।
क्या है मामला ?
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने के आरोप में जेल में है। आरोपी शिक्षक ने अपनी जमानत के लिए हाईकोर्ट में अर्जी लगाई थी । सुनवाई के दौरान आरोपी ने अपने वकील के माध्यम से दलील दी थी कि पीड़िता मांगलिक है, इसलिए उससे शादी नहीं कर सकता। आरोपी की इस दलील को सुनने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस बृजराज सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग को रेप पीड़िता की कुंडली जांच करने का आदेश दिए। आदेश में कहा गया था कि याचिकाकर्ता का दावा है कि लड़की मांगलिक है लिहाजा उसकी शादी गैर मांगलिक आदमी के साथ नहीं हो सकती । ऐसे में यह जानने के लिए क्या वाकई लड़की मांगलिक है या नहीं? दोनों पक्ष लखनऊ विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग अध्यक्ष के सामने अपनी कुंडली पेश करें । हाईकोर्ट ने ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष को कुंडलियों का मिलान और अध्ययन कर 3 हफ्ते में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला चर्चा में आ गया मीडिया में इसे प्रमुखता से छापा गया। मीडिया रिपोर्ट्स को देखकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर शनिवार को इसकी सुनवाई की और हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी।
शीर्ष न्यायालय ने लिया स्वत संज्ञान
शनिवार को छुट्टी होने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ ने मामले का संज्ञान लिया । न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर आश्चर्य व्यक्त किया। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश पीठ की विषय वस्तु है हम योग्यता( मेरिट) पर कुछ नहीं कहते। हम 23 मई के आदेश पर रोक लगाते हैं । शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि इस मामले में अगली तारीख में उच्च न्यायालय द्वारा गुण दोष के आधार पर फैसला लिया जाए।
शीर्ष न्यायालय के समक्ष बहस के दौरान सॉलीसीटर जनरल ने कहा कि हाई कोर्ट का निर्देश परेशान करने वाला है और इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। श्री मेहता का कहना था कि ज्योतिष एक विज्ञान है लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या अदालत का आदेश इसमें शामिल हो सकता है। शीर्ष अदालत का कहना है कि हमें समय समझ में नहीं आता कि यह ज्योतिष रिपोर्ट क्यों मांगी गई? शिकायतकर्ता के वकील ने कहा कि आदेश पक्षकारों की सहमति से पारित किया गया था।