सीताजी के जन्म की कुछ जानी-अनजानी कथाएं
जानकी जयंती पर विशेष
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता जी का जन्म उत्सव मनाया जाता है इसे सीता माता की जयंती या जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष यह 13-14फरवरी को मनाई जा रही है। गौरतलब है कि माता सीता के जन्म जयंती को भारत के पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों में कुछ हिंदू समुदायों के लिए सीता नवमी के रूप में जाना जाता है और वैशाख महीने अप्रैल-मई में मनाया जाता है।
रामायण दशरथ पुत्र राम की कथा ही नहीं वह जनक पुत्री सीता की भी कथा है। रामायण यानी राम का अयन। अयन का शाब्दिक अर्थ प्रयाण या अभियान होता है। वाल्मीकि ने रामायण में कई स्थानों पर जानकी या सीता के लिए ‘रामा’ शब्द का प्रयोग किया है, ऐसे में रामायण शब्द का दो तरह से विग्रह किया जा सकता है- राम का अयन और रामा का अयन । यानी रामायण राम और सीता का समन्वित अयन (अभियान या चरित्र) है । इस प्रकार रामकथा में सीता को राम के समान महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। विद्वानों ने सीता को वाल्मीकि की की अद्भुत और रहस्यमयी सृष्टि माना है।
पर क्या आप जानते हैं कि पूरे विश्व में लगभग 300 से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं ,जिनमें वर्णित अनेक तथ्य एवं घटनाएं एक दूसरे से बिल्कुल मेल नहीं खाते, लेकिन यह भी सत्य है कि इन सभी रामायणों का मूल स्रोत वाल्मीकि रामायण ही है। वाल्मीकि रामायण एकमात्र आधिकारिक एवं सर्वोपरि ग्रंथ है और सभी रचनाकारों ने इसी रामायण को अपना आधार बनाकर अपनी अपनी रामायण की रचनाएं की हैं ।
भारतीय जनमानस में कई सौ सालों से जो रामायण गहरे तक बैठी हुई है वह गोस्वामी तुलसीदास कृत ” रामचरितमानस ” है और विशेषकर हिंदू जनमानस के मन मस्तिष्क में इस कृति के पात्रों एवं घटनाओं पर अटूट श्रद्धा और विश्वास है ।यह विश्वास इतना अटल है कि इससे इतर वह कुछ कल्पना भी नहीं कर सकते। रामचरितमानस हिंदुओं का एक सबसे पूजनीय ग्रंथ है।
लेकिन क्या आप यह भी जानते हैं कि विश्व की अन्य भाषाओं की रामायण में सीता जी का कैसा और किस रूप में वर्णन है? हिंदू जनमानस में सीता जी की जो छवि प्रचलित है उससे अलग छवि इन रामायण में नजर आती है जो इन्हें रहस्यमयी और विवादास्पद भी बनाती है।
विद्वानों के शोध के अनुसार वाल्मीकि से पहले भी जातक कथाओं के रूप में राम कथाओं का प्रचलन था ,जिसमें राम, लक्ष्मण ,सीता ,दशरथ ,कौशल्या आदि चरित्र थे, लेकिन विद्वानों में अभी भी यह विवाद है कि वाल्मीकि का महाकाव्य पहले रचा गया या जातक कथाएं? यह माना जाता है कि जातक कथाएं पहले रची गई थीं। आइए जाने सीता जी को लेकर अन्य ग्रंथ क्या कहते हैं?
“दशरथ जातक ” में राम, लक्ष्मण और सीता दशरथ के पुत्र पुत्री हैं । दशरथ बनारस के राजा हैं और उनकी 16हजार पत्नियां है । इसमें सीता हरण आदि की कोई घटना नहीं है। इस कथा में रावण भी नहीं है। इस ग्रंथ में 12 वर्ष बीतने पर राम बनारस लौट कर आते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है। सीता sa साम्राज्ञी के पद पर प्रतिष्ठित होती हैं ।अब इस कथा में राम सीता का विवाह कैसे हो जाता है? इस संबंध में विद्वान दिनेश चंद्र सेन कहते हैं कि प्राचीन काल में मिस्रऔर बेबिलोनिया में एक ही परिवार में होने वाले विवाह की प्रथा थी। भारतवर्ष में भी शाक्यों में रक्त शुद्धता के आग्रह के कारण एक परिवार में विवाह की मान्यता थी। सेन साहब का कहना है कि इस कारण से दशरथ जातक में राम सीता को पति-पत्नी के रूप में दिखाना असंगत नहीं है। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि हिंदुओं में इस कथा की स्वीकार्यता कठिन थी। इस कारण वाल्मीकि ने सीता के जन्म की बिल्कुल नई कल्पना की।
लेकिन सीता का जन्म रहस्य के आवरण में हैं जो वाल्मीकि के लिए ही नहीं बल्कि सभी राम कथाओं के लिए समस्या रहा है, सभी राम कथाओं में सीता जन्म की कथा एक सी नहीं है। एक शोध आलेख में बताया गया है कि सिर्फ महाभारत के “रामोख्यान”और विमल सूरी के ” पउमचरिउ” में सीता जनक की वास्तविक पुत्री हैं। संभवत इसका आधार या तो वाल्मीकि रामायण या फिर आदि रामायण हो, जैसा फादर कामिल बुल्के ने अपने शोध में संकेत किया है।
वाल्मीकि के संस्कृत महाकाव्य और कम्ब के तमिल काव्य में संतान प्राप्ति के लिए एक अनुष्ठान में भूमि पर हल चलाते समय जनक को सीता प्राप्त होती है । इसी का एक और रूप क्षेमेंद्र की “रामायण मंजरी” में मिलता है, जिसमें जनक को आकाशवाणी होती है और वह अप्सरा मेनका को देखकर संतान प्राप्ति की कल्पना करते हैं और फिर हल चलाते समय सीता प्राप्त होती है और उसी आकाशवाणी में बताया जाता है कि वह कन्या मेनका जाया है।
संघदास के जैन ग्रंथ “वसुदेव हिंदी” में सीता को रावण की पुत्री बताया गया है, क्योंकि ज्योतिष भविष्यवाणी करते हैं कि मंदोदरी-रावण विवाह से उत्पन्न पहली संतान रावण के वंश का नाश कर देगी और जब मंदोदरी एक कन्या को जन्म देती है तो रावण उसे एक पात्र में बंद कर सुदूर प्रदेश में जाकर गाड़ देते हैं जो जनक के राज्य में हैं । बाद में जनक को यही कन्या मिलती है जिसे वह पुत्री के रूप में पालते हैं ।
गुणभद्र के “उत्तर पुराण” की कथा अनुसार अलकापुरी के राजा की कन्या मणिवती की तपस्या में रावण विघ्न डालता है तो वह प्रतिज्ञा करती है कि वह रावण कन्या के रूप में जन्म लेकर उससे प्रतिशोध लेगी। बाद में वह मंदोदरी की कन्या के रूप में जन्म लेती है जिसे ज्योतिष ही रावण के लिए अशुभ बताते हैं तब रावण कन्या को एक पात्र में बंद कर मिथिला प्रदेश में गाड़ आता है जो किसानों को मिलती है, जिसे वे जनक को सौंप देते हैं ।
सीता जन्म की लगभग ऐसी कथाएं तिब्बत रामायण ,चीनी ,तुर्किस्तान की खोटानी रामायण या संस्कृत के दशावतार में मिलती हैं।
अद्भुत रामायण में कुछ अंतर है। रावण ऋषियों के रक्त से भरा पात्र मंदोदरी को सावधानी से रखने को देता है और कहता है कि पात्र का द्रव्य ना तो वह स्वयं चखे और ना ही किसी को चखने दे ,लेकिन रावण के साम्राज्य विस्तार के अभियान पर निकलते ही प्राणांत की आशा से मंदोदरी पात्र में रखा द्रव्य पी लेती है लेकिन मरने के स्थान पर वह गर्भवती हो जाती है। लोकोपवाद की आशंका से घबरा कर मंदोदरी तीर्थ यात्रा के बहाने अपने भ्रूण को जमीन में गाड़ देती है।
सिंगारवेलु ने अपने अध्ययन में सत्रह रामकथाओं को आधार बनाया है। उनके निष्कर्षो को देखें –
1-बारह रामकथाओं में सीता या तो किसी देवी जैसे लक्ष्मी उमा इंद्राणी की अवतार हैं या तपस्वी कन्या जो रावण से प्रतिशोध लेने अवतरित होती है।
2-वाल्मीकि एवं कंब रामायण में सीता का जन्म चमत्कारिक रूप से पृथ्वी से होता है।
3-विमलसूरी के पउमचरिउ एवं महाभारत के ‘रामोपख्यान ‘ में सीता जनक की पुत्री हैं।
4-अधिकतर राम कथाओं में सीता रावण और उसकी पत्नी की कन्या हैं।
और भी कथाएं सीता के जन्म को लेकर अनेक रामायणों में अलग अलग तरीके से प्रचलित हैं, जिनका वर्णन ए. के. रामानुजन की “तीन सौ रामायण”नामक पुस्तक में है जो कि वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई है। उपरोक्त तथ्य भी इसी पुस्तक पर आधारित हैं।