क्या विधायक प्रतिनिधि नियुक्त करना वैधानिक है ?

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इटारसी/भोपाल// इन दिनों  पिछोर से भाजपा विधायक प्रीतम लोधी के विधानसभा क्षेत्र में सभी थानों के लिए अपने प्रतिनिधि बनाए जाने की काफी चर्चा है।  विधायक ने बाकायदा पत्र जारी करके अधिकारियों को सूचना भी दे दी है और कहा है कि संबंधित थानों में उनकी ओर से अधिकृत प्रतिनिधि ही जनता की समस्याओं को लेकर संवाद और पैरवी करेंगे।
विधायक की व्यवस्था पर कई सवाल खड़े हो गए हैं । अधिकारियों ने थाना स्तर पर विधायक प्रतिनिधि जाने बनाए जाने को नियम विरोधी बताया है पर विधायक ने इंटरनेट मीडिया पर जारी वीडियो में अपने निर्णय को बिल्कुल सही बताया है।
मीडिया खबरों की माने तो ऐसा ही पत्र दतिया के सेवड़ा से विधायक प्रदीप अग्रवाल का भी सामने आया है। यह पत्र 9 माह पुराना बताया जा रहा है। विधायकों के इस पत्र से प्रशासनिक हलकों में हलचल बढ़ गई है।  वह नियम टटोलने लगे हैं। विधायक प्रतिनिधि नियुक्त करने के बारे में अधिकारियों को नियम और कायदों की कोई जानकारी नहीं है।
वैसे जिला पंचायत, नगर निगम, नगर पालिका,अस्पतालों सहित कई विभागों में जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधि नियुक्त होने की परंपरा से बन गई है।

पिछले दिनों एक खबर काफी चर्चा में रही की हरदा क्षेत्र से पांच बार विधायक और प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रहे कमल पटेल को जिले में सांसद प्रतिनिधि नियुक्त किया गया है!  कांग्रेस ने इसे लेकर चुटकी भी ली थी ।
वैसे इस तरह की खबरें रोज ही अखबारों और मीडिया में आती रहती है कि फलां विधायक /सांसद ने फलां व्यक्ति को फलां विभाग में विधायक/ सांसद प्रतिनिधि नियुक्त किया है, जिस पर लोगों ने विधायक/ सांसद का आभार  और नियुक्तियों पर हर्ष व्यक्त किया है।
इस तरह की नियुक्तियों का कोई नियम नहीं !
पर क्या आप जानते हैं कि इस तरह की नियुक्तियों का कोई नियम नहीं है। जन  प्रतिनिधित्व अधिनियम में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।  एक तरह से इस तरह की नियुक्तियां अवैध है, पर दुख और अफसोस की बात यह है कि प्रशासन में बैठे बड़े-बड़े अधिकारी इसे मान्यता देते हैं।  मध्य प्रदेश शासन के संसदीय कार्य विभाग से सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी में साफ लिखा है कि विधायक प्रतिनिधि नियुक्त करने या उसके अधिकार संबंधी कोई निर्देश विभाग द्वारा जारी नहीं किए गए यानी विभिन्न विभागों में विधायक द्वारा अपनी स्थाई प्रतिनिधि की नियुक्तियां अवैध और अवैधानिक हैं।  इस तरह केंद्र सरकार का भी सांसद  प्रतिनिधि को नियुक्त करने को लेकर कोई आदेश नहीं है।
जब से सिलसिला चला है विधायक सांसद अपने चहेतों को इस तरह पुरस्कृत और ओबेलाइज्ड करने लगे हैं।
मजे की बात यह है कि इस तरह के प्रोक्सी प्रतिनिधियों का जलवा हर जगह नजर आता है।  नगर पालिका में तो इनकी हैसियत किसी अध्यक्ष से काम नहीं मानी जाती है। यह कथित प्रतिनिधि प्रशासनिक बैठकों में बाकायदा हिस्सा लेते हैं, शासकीय कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं अधिकारियों से सवाल जवाब करने और प्रशासनिक अधिकारी इनके आगे घिघयाते नजर आते हैं ।
जिले के एक विधायक ने तो एक विभाग में अपने तीन प्रतिनिधि नियुक्त कर दिए हैं।  पूर्व विधायक गिरजा शंकर शर्मा ने एक बातचीत में इन पंक्तियों के लेखक से खुद कहा था कि विधायक प्रतिनिधि नियुक्त करने का कोई नियम नहीं है।
एक कलेक्टर महोदय से जब विधायक प्रतिनिधियों को लेकर प्रश्न पूछा तो उन्होंने हंसते हुए बात को टालते हुए कहा “भाई क्या विवाद पैदा करवाओगे..?”

यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं , नैतिक भी है!  विधायक सांसद ऐसा कैसे कर सकते हैं वह तो खुद जनता के प्रतिनिधि (आमतौर पर अपने को सेवक संबोधित करते हैं ,पर हकीकत सभी को मालूम है ) हैं एक प्रतिनिधि अपना प्रतिनिधि कैसे नियुक्त कर सकता है या कर रहा है?

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