कमलनाथ सरकार के दौर में सूबे में भी तैयार हुआ था ‘राइट टू हेल्थ बिल’,आज स्वास्थ्य विभाग में खा रहा है धूल ?

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भोपाल // अभी हाल ही में राजस्थान सरकार ने स्वास्थ्य का अधिकार (राइट टू हेल्थ) बिल विधानसभा में पारित किया है, जिसका वहां विरोध हो रहा है। इसी तर्ज पर 2019 में मध्य प्रदेश की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने भी राइट टू हेल्थ बिल को लेकर तैयारी की थी ।इसके लिए बाकायदा हेल्थ कांक्लेव आयोजित कर देश के तमाम विशेषज्ञों से चर्चा कर एक मसौदा तैयार किया था । अब यह मसौदा स्वास्थ्य विभाग में धूल खा रहा है यदि उस समय यह बिल पास हो जाता तो मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य होता जो अपनी जनता को स्वास्थ्य का अधिकार प्रदान करता जिसका प्रदेश की साढ़े साथ करोड़ जनता को फायदा पहुंचता।

आयुष्मान योजना से लिंक किया गया था

 जानकारी के अनुसार 2019 में जो राइट टू हेल्थ बिल तैयार किया गया था, उसे केंद्र की आयुष्मान भारत निरामय योजना से लिंक किया गया था, इसके तहत आम लोगों को पांच लाख रूपए तक फ्री इलाज की सुविधा केंद्र देता है, वह तो रहती ही, इसके आगे इलाज में होने वाले खर्च को राज्य शासन वहन करती । इतना ही नहीं प्रदेश के बाहर भी इलाज कराया जा सकता था।

 निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाने की थी कोशिश

 मध्यप्रदेश के इस राइट टू हेल्थ बिल में जो सबसे खास बात थी वह यह कि इमरजेंसी इलाज के दौरान यदि कोई मरीज निजी अस्पताल पहुंच जाता है तो अस्पताल उससे बिना पैसे की मांग किए इलाज शुरू करना था,अभी तक ऐसा नहीं होता है। इसलिए कई मामलों में मरीज की जान तक चली जाती है। वहीं दूसरी ओर निजी अस्पतालों में हर बीमारी के इलाज का खर्च भी फिक्स किया गया था ।

97 बीमारियों को किया गया था कवर

 2019 में तैयार किया गया राइट टू  हेल्थ बिल में 97 बीमारियों के इलाज की गारंटी सरकार दे रही थी । उस समय के प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रहे तुलसी सिलावट ने बताया था कि 97 प्रकार की बीमारियों में मुख्य रूप से कैंसर, हार्ट डिसीज, ब्रेन ट्यूमर और पैरालिसिस भी शामिल थे

संसाधन पर था जोर

 हेल्थ बिल को सफल बनाने के लिए पूरी योजना तैयार की गई थी। उसमें सबसे ज्यादा जोर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और चिकित्सकों की संख्या बढ़ाने पर दिया गया था। इसमें जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज से जोड़ने के साथ ही बड़े बड़े जिलों में कुछ नए अस्पताल खोलने की योजना थी। वही दस हजार सब हेल्थ सेंटर खोलकर उसमें सबसे बड़े स्तर तक चिकित्सकों की भर्ती करने की योजना थी।

 डॉक्टर्स की जिम्मेदारी होती तय

राइट टू हेल्थ बिल को तैयार करने में वरिष्ठ विशेषज्ञों ने अपनी सलाह दी थी।  सलाह का एक बिंदु यह भी था कि सरकारी से लेकर निजी अस्पताल तक के चिकित्सक की जिम्मेदारी तय की जाए, एक तरफ जहां सरकारी अस्पताल में डाक्टर नदारद रहते हैं वहीं दूसरी और निजी अस्पताल में डॉक्टर से पैसे की लूट में लगे रहते हैं । इस राइट टू हेल्थ बिल  में चिकित्सकों की जिम्मेदारी तय की गई थी।

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