एक बार फिर क्यों चर्चा में है पारसनाथ पहाड़ी ?

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पारस नाथ पहाड़ी को मुक्त कराने के लिएआदिवासियों ने शुरू की मारंग बुरु बचाओ यात्रा

जमशेदपुर// झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ पहाड़ी जिस पर जैन समाज का पवित्र तीर्थ स्थल समवेत शिखर स्थित है, एक बार फिर चर्चा और विवादों में है ।अब आदिवासी इस पहाड़ी पर अपना दावा कर रहे हैं उनका कहना है कि यह स्थल संथाल आदिवासियों का सर्वाधिक बड़ा पूजा स्थल है जिससे मरांग बुरु यानी ईश्वर का दर्जा प्राप्त है। पर सरकार ने इसे जैन समुदाय को सौंप दिया है।

जैन समाज पारसनाथ को पर्यटन स्थल बनाए जाने का विरोध कर रहा है उनकी मांग है कि सम्मेद शिखर जी के 50 किलोमीटर के दायरे में मांस और मदिरा का सेवन और बिक्री प्रतिबंधित की जाए वही आदिवासियों का कहना है कि पारसनाथ पहाड़ी की तलहटी में उनके ईश्वर की पूजा होती है जहां जाहेरथान और माझीथान के रूप में 2 पूजा स्थल हैं और सेहराब तथा वंदना पर्व से पहले वहां मुर्गे और बकरियों की बलि दी जाती है ।आदिवासियों का आरोप है की सरकार ने पूरी पारसनाथ पहाड़ी को जैन समाज को सौंप दिया है जो कि उनका मरांग बुरु है। आदिवासियों के नेता सालखान मुर्मू कहना है कि मरांग बुरु आदिवासियों के लिए अयोध्या के राम मंदिर से कम महत्वपूर्ण नहीं है।

 पिछ्ले 17 फरवरी को आदिवासी से निकाल अभियान संगठन ने पारसनाथ पहाड़ी को मुक्त कराने के लिए देशभर में “मरांग बुरु बचाओ यात्रा” की शुरुआत की है । यह यात्रा 1 माह तक चलेगी एएसए के अध्यक्ष सलखान मुरमू कहना है कि संगठन के सदस्य असम बिहार उड़ीसा पश्चिम बंगाल और झारखंड के आदिवासी बहुल वाले 50 जिलों में कलेक्टर कार्यालय के बाहर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करेंगे और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिए जाएंगे। इन यात्राओं का उद्देश्य पूरे देश का समर्थन प्राप्त करना है।

10 जनवरी को ‘मरांग बुरु बचाओ’ अभियान के लिए पारसनाथ पहाड़ी पर ‘महाजुटान’ करने का ऐलान किया गया था अपने पुरखों की पारंपरिक धरोहर और आस्था के स्थल से हटाये जाने तथा यहां आकर मांस-मदिरा खाने के विरोध के नाम पर सबके आने पर ही प्रतिबंध लगाने की बात ने आदिवासियों को आक्रोशित कर दिया। उनका कहना था कि यहां कल तक हम इसके घोषित मालिक थे और आज यहां हमारे ही आने जाने पर रोक लगाई जा रही है। इस महाजुटान को संबोधित करते हुए सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा, कल तक हमें विकास के नाम पर विस्थापित किया गया और अब तथाकथित धार्मिक आस्था के नाम पर विस्थापित किया जा रहा है। ऐसा नहीं होने दिया जाएगा।

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