रैसलपुर में पाई गई दुर्लभ बुद्ध प्रतिमा जिला संग्रहालय में होगी संग्रहित
इटारसी। इटारसी से लगभग 7 किलोमीटर पर स्थित रैसलपुर ग्राम के निवासी राजेन्द्र प्रसाद चौधरी के घर के पीछे बाड़े में पाई गई दुर्लभ बौद्ध प्रतिमा अब नर्मदापुरम जिला पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित की जा सकती है, पिछले दिनों राज्य के पुरातत्व विभाग के अधिकारी ने पहुंच कर मूर्ति का निरीक्षण किया उनके साथ दा बौद्धिक सोसायटी ऑफ इटारसी के संरक्षक और सदस्य भी थे।
पुरातत्व विभाग के सीनियर गाइड हुकुमचंद मलिक ने बताया की यह मूर्ति पुरातात्विक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है बुद्ध की मूर्ति का यहां मिलना बहुत दुर्लभ है और पूरे नर्मदापुरम के लिए गौरव की बात है।
इस मूर्ति की यहां उपस्थिति की ओर सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार सुधांशु मिश्र और ख़बर भारतवर्ष की टीम ध्यान आकर्षित करवाया था, इसके बाद द बौद्धिक सोसायटी ऑफ इटारसी के संरक्षक प्रहलाद निकम ने पुरातत्व विभाग से संपर्क कर इस तरफ़ ध्यान आकर्षित किया,
क्या है बुद्ध प्रतिमा की विशेषता ?
ग्राम रेसलपुर में बहुत सी प्रतिमाएं और पुरावशेष बिखरे पड़े हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण एक बुद्ध प्रतिमा है जो गाँव के ही एक कृषक के बाड़े में एक सीमेंट के छोटे से चबूतरे पर रखी हुई है । इस प्रतिमा का क्षेत्र में होना दुर्लभ और आश्चर्यजनक है । बलुआ पत्थर से बनी करीब 4 फुट ऊंची और 3 फुट से ज्यादा चौड़ी यह प्रतिमा करीब डेढ़ फुट मोटे शिलाखंड पर उकेरी गई है । मूर्ति में भगवान बुद्ध ध्यानस्थ मुद्रा में है। चेहरा शांत और सौम्य है, केश विन्यास अद्वितीय है । बुद्ध के दोनों और चँवरधारी पुरुष है और सिर के दोनों और दो मालाधारी स्त्री प्रतिमाएं स्पष्ट रूप से अंकित है । प्रतिमा के ऊपर त्रीछत्र बना हुआ है । प्रतिमा बीच में से टूटी हुई है जिसे जोड़ कर रखा गया है।
देवराज बाबा के नाम से होती थी पूजा
कृषक श्यामसुंदर चौधरी बताते हैं कि उनके भाई राजेंद्र चौधरी के घर के पीछे यह मूर्ति वर्षों से बाड़े में गड़ी हुई थी । इस मूर्ति का ऊपरी हिस्सा ही दिखाई देता था । हमारे पूर्वज देवराज बाबा के नाम से कई सदियों तक इसकी पूजा करते रहे पर करीब 20 साल पहले जब आसपास की मिट्टी का क्षरण हुआ तो मूर्ति का सिर दिखाई दिया । जब खुदाई की तो बुद्ध की चार पांच फीट ऊंची प्रतिमा दो टुकड़े में निकली। जिसे हमने चबूतरा बनाकर स्थापित कर दिया है।
क्या कभी यहां भव्य मंदिर था ?
पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र की ज्यादातर प्रतिमाएं 12 वीं शताब्दी की हैं । इस क्षेत्र में बुद्ध की प्रतिमा का मिलना बहुत ही दुर्लभ और आश्चर्यजनक है । उनका अनुमान है कि इस स्थान पर कोई भव्य मंदिर रहा होगा जो किसी कारण से नष्ट हो गया या कर दिया गया हो और उसके अवशेष आज भी यहां बिखरे हैं। जिन्हे संरक्षण की जरूरत है।
पुरातत्व सम्पदा से भरपूर है यह क्षेत्र
इटारसी और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्र पुरातत्वीय अवशेषों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध हैं। अंचल में प्राचीन प्रतिमाएं बहुतायत में फैली हुई है जो कलात्मक दृष्टि से बहुत ही प्राचीन और महत्वपूर्ण हैं। अनेक मूर्तियों को तो ग्रामीण सिंदूर आदि पोत कर देवी देवताओं की तरह पूज रहे हैं। ग्राम रेसलपुर में बहुत सी प्रतिमाएं और पुरावशेष बिखरे पड़े हैं, इसके अलावा गांव में अनेक स्थानों पर प्राचीन मूर्तियां सती शिलाएँ, स्थापत्य खंड, स्तंभ आदि बिखरे पड़े हुए हैं । जिसमें प्रमुख रुप से उमा महेश्वर की प्रतिमा का ऊपरी भाग है इस मूर्ति में पार्वती हाथों में दर्पण है। ऊपर अनेक देव प्रतिमाएं हैं। वक्त के कारण मूर्ति अस्पष्ट हो गई है। गांव के मंदिर प्रांगण में पेड़ के नीचे कई मूर्तियाँ रखी है।शिव की एक अस्पष्ट और खंडित प्रतिमा है जिसमें वे सर्प पकड़े हुए हैं वही अंबिका की प्रतिमा है। लगभग 17 वीं शताब्दी की गणेश प्रतिमा मंदिर परिसर में दीवार में जड़ी हुई है । सूंड दाहिनी ओर मुड़ी हुई है। गणेश के सिर और कान शरीर की तुलना में काफी बड़े हैं। शैली के कारण यह प्रतिमा अन्य प्रतिमाओं से अलग है। गांव में कई पत्थर के बने स्तंभ यहां-वहां बिखरे हुए हैं । उनमें कई बहुत अच्छी स्थिति में है, जिन पर सुंदर नक्काशी और प्रतिमाएं अंकित हैं । कई स्तंभ जमीन में धँसे हुए हैं और उनके बारे में गांव वालों की अपनी अपनी धारणाएं हैं। कुछ सती स्तंभ है जो बहुत अच्छी स्थिति में है। अन्य प्रतिमाएं भी हैं जिनका संरक्षण किया जाना जरूरी है.