नई दिल्ली/ जयपुर // राजस्थान में इन दिनों सभी की नजर सचिन पायलट के राजनीतिक कदम और भविष्य पर है । फिलहाल कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच की खींचतान थम नहीं पा रही है। रविवार को अपने पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर दोसा में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने गहलोत सरकार पर कई तंज किए। ऐसी खबरें थी इस मौके पर सचिन पायलट नई पार्टी का ऐलान कर सकते हैं , पर ऐसा कुछ नहीं हुआ ।यह जितनी कांग्रेस के लिए राहत भरी खबर है उतनी ही भाजपा के लिए सुकून की बात मानी जा रही है।
प्रदेश के राजनीतिक समीकरण और परिदृश्य के मद्देनजर भाजपा आलाकमान सचिन पायलट की राजनीतिक कदमों पर नजर रखे हुए है। पार्टी का मानना है कि यदि सचिन पायलट कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाते हैं तो वह भाजपा के लिए मुफीद नहीं होगा, वे कांग्रेस विरोधी वोट में हिस्सेदारी करेंगे , यानी भाजपा के ही वोट काटेंगे। पिछली बार पायलट के प्रभाव वाले क्षेत्र राजस्थान में 26 में से 23 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा किया था, भाजपा इस बार परिणामों को उलटने की कोशिश कर रही है, लेकिन भाजपा ऐसा कुछ कर पाएगी यह पायलट के भविष्य के राजनीतिक कदमों पर निर्भर करेगा।
छोटे दलों से परेशानी?
भाजपा आलाकमान प्रदेश के बदलते राजनीतिक परिदृश्य को लेकर आशंकित और परेशान नजर आ रहा है। प्रदेश में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट बढ़ रही है ।पत्रिका में छपी खबर के मुताबिक पार्टी के रणनीतिकारों की लगातार हो रही चुनाव पूर्व बैठक में यह बात उभरकर सामने आई है कि नवम्बर में होने चुनाव में पार्टी को कांग्रेस के साथ सीधी लड़ाई में ही आपेक्षित फायदा हो सकता है। भा ज पा नेतृत्व का मानना है कि तीसरे मोर्चे के आसार प्रदेश में नहीं के बराबर रहते हैं, लेकिन इस बार परिस्थितियां कुछ अलग हो सकती हैं । कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों के आंदोलन का जाट बाहुल्य क्षेत्रों में सांसद हनुमान प्रसाद बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी(रालोपा) के अलावा राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) व हरियाणा की जननायक जनता पार्टी फायदा उठाने की कोशिश करेगी। रालोपा जाट बाहुल्य क्षेत्र में निरंतर असर दिखा रही है । विधानसभा में उसके तीन विधायक हैं। इसके अलावा भारतीय ट्राइबल पार्टी(बीटीपी ) मेवाड़ के आदिवासी अंचल में प्रभाव रखती है । पिछली बार उसके दो विधायक जीते थे। इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी दंगल में उतरने की पूरी तैयारी में है । ऐसे में सत्ता दल विरोधी वोट बांटना पार्टी की राह में अवरोध पैदा नहीं कर सकता है। उसे यह भी डर है कि टिकट वितरण के बाद संभावित बगावत की स्थिति में यह पार्टियां बागियों का विकल्प बन सकती हैं और उसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है।