भाजपा कांग्रेस – किसके लिए सत्ता की चाबी साबित होगा महाकौशल ?
भोपाल /जबलपुर // चुनावी तैयारियों में जुटी प्रदेश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का फोकस इस बार महाकौशल क्षेत्र पर है । इन दलों के नेता तो इस क्षेत्र को सत्ता की चाबी तक बता रहे हैं । सत्ताधारी भाजपा बुंदेलखंड, चंबल इलाके में मचे घमासान और मालवा निमाड़ सहित अन्य क्षेत्रों के असंतोष की भरपाई महाकौशल से करना चाहती है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस का महाकौशल में प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था । वह न सिर्फ इसे दोहराना चाहती है, बल्कि इसमें इजाफा करने का इरादा भी रखती है। इन कारणों के चलते महाकौशल क्षेत्र आगामी कुछ दिनों तक राजनीतिक आयोजनों की सरगर्मियां का केंद्र नजर आने वाला है।
दिग्गजों का जमावड़ा
आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महत्वपूर्ण हुए महाकौशल क्षेत्र में अगले 3 हफ्ते सरगर्मी भरे हो सकते हैं। दोनों ही दल अपने-अपने दिग्गजों और महत्वपूर्ण नेताओं के कार्यक्रम क्षेत्र में आयोजित करवाने जा रही है । 10 जून को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जबलपुर में लाडली बहना योजना की पात्र हितग्राही बहनों के खाते में ₹1000 की रकम ट्रांसफर करेंगे। वही 2 दिन बाद यानी 12 जून को प्रियंका गांधी महाकौशल के केंद्र नगर जबलपुर से विधानसभा चुनाव अभियान का आगाज करने वाली है । नर्मदा पूजन के साथ-साथ रोड शो और रैली का भी को भी संबोधित करेंगी। कांग्रेस इस आयोजन की तैयारी में जुट गई है। बताया जाता है कि प्रियंका की रैली में एक लाख लोगों को जुटाने की कवायद इस क्षेत्र के नेता कर रहे हैं ।
योग दिवस पर प्रधानमंत्री उपराष्ट्रपति?
प्रदेश का आयुष विभाग 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बड़े पैमाने पर आयोजित करने जा रहा है। खबर है कि विभाग इस आयोजन के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनकर को आमंत्रित कर रहा है ,वैसे दो-तीन दिन पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में यह खबर भी थी कि इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिरकत कर सकते हैं।
महाकौशल क्यों बना जरूरी?
2018 के चुनाव में कांग्रेस ने महाकौशल में बढ़िया प्रदर्शन किया था।महाकौशल की 38 में से 24 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं थीं । बीजेपी को महाकौशल इलाके से निराशा हाथ लगी थी. बीजेपी को 13 सीटों से ही संतोष करना पड़ा । 1 सीट निर्दलीय के खाते में गई थी,और इसकी बड़ी वजह आदिवासियों की नाराजगी मानी गईं थी । 2018 में कांग्रेस ने कमलनाथ को सीएम का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था. इससे उनके गृह जिले छिंदवाड़ा की सभी 7 सीट कांग्रेस ने जीत ली थीं. वहीं जबलपुर में कांग्रेस को 8 में से 4 सीटें मिली थीं. ।
अब बड़ा सवाल है कि क्या 2023 के चुनाव में भी कांग्रेस ऐसा ही प्रदर्शन कर पाएगी या बीजेपी को बड़ी सफलता मिलेगी? वैसे फ़िलहाल कांग्रेस ने महाकौशल से आने वाले कमलनाथ को ही अपना सीएम चेहरा बनाया है इसके चलते भी अगले चुनाव में यहां से कांग्रेस को बेहतर नतीजों की उम्मीद है।
कांग्रेस को लगता है कि पिछ्ले चुनाव में खासी बढ़त बनाने वाले महाकौशल क्षेत्र से चुनावी आभियान का आगाज़ कर वह ज्यादा फायदा उठा सकती है, क्योंकि बुंदेलखंड और बघेल खंड की सीमाएं इस क्षेत्र को छूती हैं, यहां का माहौल इन क्षेत्रो को भी प्रभावित करेगा। वहीं मध्य भारत के नर्मदापुरम, बैतूल और हरदा जिले जो कि कभी महाकोशल का हिस्सा थे, सांस्कृतिक और राजनीतिक रुप से उसके जैसे ही है, जैसे नर्मदापुरम जिला महाकौशल के नरसिंहपुर क्षेत्र से लोकसभा सीट को साझा करता है, प्रभावित किया जा सकता है।
वहीं भाजपा की बात करें तो दूसरे अंचलों में जिस तरह भीतरी खींचतान है, उतनी इस अंचल में नजर नहीं आती है, इसलिए भाजपा यहां अपने को कुछ हद तक कंफर्टेबल मान रही है। उसे पिछ्ले कुछ सालों में अपने आदिवासियों के लिए किए कामों का भी भरोसा है। भाजपा दूसरे क्षेत्रो के नुकसान की भारपाई भी यहां से करने के मूड में है।
महाकौशल क्षेत्र?
राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण महाकौशल इलाके में जबलपुर, छिंदवाड़ा, कटनी, सिवनी, नरसिंहपुर, मंडला, डिंडोरी और बालाघाट जिले है शामिल है