नई दिल्ली// केन्द्र सरकार ने “स्वच्छ जीवन ,बेहतर जीवन” नारे के साथ देश के प्रत्येक रसोईघर को धुआं मुक्त करने के लिए 1 मई 2016 से उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी, पर यह योजना अब तक अपना लक्ष्य पूरी तरह से हासिल नहीं कर पाई है और और यह बात कोई और नहीं पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से ऊर्जा उपभोग में बदलाव पर सलाहकार समिति की रिपोर्ट ही बताती है।
रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र के 80 प्रतिशत घरों में एलपीजी गैस कनेक्शन है लेकिन इसके बावजूद आज भी 67% घरों में लकड़ी, कंडो (उपलों) या दूसरे स्रोतों से खाना पकाया जा रहा है।
रिपोर्ट ने इस बात की भी पड़ताल की है कि लोग क्यों एलपीजी कनेक्शन होने के बावजूद गैस पर खाना नहीं पकाते तो मोटे तौर पर इसके लिए गैस सिलेंडर की ज्यादा कीमत को जिम्मेदार ठहराया गया है ।
उज्जवला के तहत गैस कनेक्शन लेते समय तो कोई राशि नहीं देनी पड़ती है लेकिन उस की लागत उन्हें मासिक किस्त के में नगद के तौर पर चुकानी होती है।
देश में ग्रामीण सालाना 6.2 सिलेंडर इस्तेमाल करते हैं। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत में अमूमन हर गैस कनेक्शन धारक 6.7 सिलेंडर सालाना इस्तेमाल करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या कम है ।ग्रामीण क्षेत्र में यह संख्या ओसतन 6.2 है। हालांकि जिन घरों में अभी भी दूसरे ईंधन जैसे लकड़ी कंडे आदि का इस्तेमाल हो रहे हैं वहां सिर्फ सालाना 4.1 सिलेंडर की औसतन इस्तेमाल किया जा रहा है।सनद रहे कि उज्जवला योजना के तहत अभी तक कुल 9.5 करोड़ घरों को एलपीजी कनेक्शन दिया गया है।