आदिवासी सीटों पर गैर राजनीतिक चेहरों की तलाश में है कांग्रेस ?
भोपाल// नए राजनीतिक समीकरणों और नगरीय निकायों के अनुभव को देखते हुए नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों में नए चेहरे की तलाश कर रही है। पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में ऐसे नए चेहरों को खोजने को कहा है जो राजनीतिक पृष्ठभूमि से ना आते हो पर सामाजिक तौर पर सक्रिय हों । कांग्रेस पिछली बार की तरह इस बार भी आदिवासी वर्ग की ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने पर फोकस कर रही है।
2018 में जब डेढ़ दशक बाद कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी तो उसका एक बड़ा कारण आदिवासी वर्ग का कांग्रेस को समर्थन मिलना था। कांग्रेस ने 47 आदिवासी सीटों में से 30 पर जीत हासिल की थी। पार्टी इस प्रदर्शन को फिर दोहराना चाहती है । दरअसल नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी ने महापौर पद के लिए कई नए चेहरों को आजमाया था और उसके परिणाम भी सुखद रहे थे । पहली बार था कि कांग्रेस के 5 महापौर चुने गए । इस बार कांग्रेस द्वारा चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए हर संभावनाओं पर काम किया जा रहा है । यही कारण है कि कांग्रेस ने 50 फ़ीसदीसीटों पर प्रत्याशी के रूप में युवा ,अनुसूचित जाति जनजाति, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को मैदान में उतारने की योजना बनाई है। वरिष्ठ नेताओं के अलावा सभी सहयोगी संगठनों, हर क्षेत्र के विशेषज्ञ गणमान्य और प्रभावशाली लोगों से सुझाव लिए जा रहे हैं । इतना ही नहीं सेवानिवृत्त अधिकारियों और आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले एनजीओ की मदद से उन व्यक्तियों की जानकारी जुटाई जा रही है जो चाहे राजनीतिक पृष्ठभूमि से ना हो सामाजिक रूप से सक्रिय और प्रतिष्ठित हो । इसमें सेवानिवृत्त अधिकारी ही नहीं वर्तमान अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं।
विगत चुनाव में जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) के संरक्षक डॉ हीरालाल अलावा को चुनाव लड़या था वह जीते थे । कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थी जिनमें से 49 विधायक आरक्षित सीटों पर जीते थे। इसके बाद निकाय चुनाव में छिंदवाड़ा से विक्रम अहाके को महापौर पद के लिए मैदान में उतारा था वह भी जीते। इसी को कांग्रेस फिर दोहराना चाहती है।
जयस की गतिविधियों पर दोनों पार्टी की नजर
इधर दोनों ही राजनीतिक दल जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस ) की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं । जयस ने 80 विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है। जाहिर है कि आदिवासी वोटों के बंटवारे का नुकसान दोनों दलों को होगा, क्योंकि 47 में से 30 सीटें अभी कांग्रेस के पास हैं, कांग्रेस इसमें कमी आने नहीं देना चाहती है। वहीं भाजपा ने भी आदिवासी क्षेत्रों में अपनी गतिविधि बढ़ाई है । शिवराज सरकार ने पेसा कानून लागू करके यह संदेश देने का काम किया है कि वह आदिवासी वर्ग की सबसे बड़ी हितेषी है।