वानरों से मनुष्य की उत्पत्ति के इस सिद्धान्त को हटाने के विरोध में उतरे देश भर के वैज्ञानिक
नई दिल्ली// राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद (एनसीईआरटी) ने कक्षा 9 और 10 के सिलेबस से दुनिया के महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन की प्रसिद्ध इवोल्यूशन थ्योरी यानी विकास के सिद्धांत को हटाने का फैसला किया है। भारत के लगभग 18 सौ से अधिक वैज्ञानिकों और शिक्षकों ने एनसीईआरटी के इस फैसले का विरोध किया है । कक्षा 9 और 10 के लिए विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों से डार्विन के विकास के सिद्धांत को हटाने की निंदा करते हुए एनसीईआरटी को लिखे खुले पत्र पर वैज्ञानिकों शिक्षकों ने हस्ताक्षर किए हैं। इस थ्योरी में प्रमुख रूप से यह बताया गया है कि पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति बंदर की प्रजाति के जानवरों से हुई यानी मनुष्य के पूर्वज मूल रूप से वानर वंश के थे ।
इसका विरोध जताते हुए ब्रेकथ्रू साइंस सोसायटी ने एक प्रेस स्टेटमेंट जारी किया है जिसमें कोर्स से थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन हटाने के खिलाफ एक अपील शीर्षक वाला पत्र शामिल है। इस पर भारतीय विज्ञान संस्थान टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिक संस्थानों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए हैं।
कोविड महामारी के बाद छात्रों पर बोझ को कम करने के लिए और कोर्स को तर्कसंगत बनाने की कोशिश के नाम पर पहले ही मुगलों से जुड़े कई प्रसंग हटाए गए थे. वहीं अब विज्ञान की पाठ्यपुस्तक के अध्याय 9, ‘आनुवांशिकता और विकास’ को ‘आनुवंशिकता’ से बदल दिया गया था.
शिक्षाविदों का मानना था कि ऐसा सिर्फ एक शैक्षणिक शासन के लिए किया गया है ,मगर अब स्थाई तौर पर सिलेबस से हटा दिया गया है। वैज्ञानिक समुदाय का मानना है कि डार्विन के विकास सिद्धांत सिद्धांत को कोर्स से हटाना शिक्षा का उपहास है। वैज्ञानिकों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि विकास का सिद्धांत बच्चों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और डार्विन का प्राकृतिक चयन का सिद्धांत छात्रों को जरूरी सोच और वैज्ञानिक पद्धति के महत्व के बारे में शिक्षित करता है। यह है कि जैविक दुनिया लगातार बदल रही है और विकास इसकी अनिवार्य प्रक्रिया है जबसे डार्विन ने अपने सिद्धांत को प्रतिपादित किया है तब से तर्कसंगत सोच की आधारशिला रखी गई है।