सूबे में कई नए राजनैतिक खिलाड़ी मैदान में ! भाजपा- कांग्रेस की नींद उड़ी..?
भोपाल// सूबे में साल के अंत तक होने वाले चुनावों में भाजपा या कांग्रेस ही नहीं अन्य राजनीतिक दल भी चुनावी मैदान में ताल ठोकने की तैयारी में है इनमें से कुछ नए हैं तो कुछ पुराने हैं ।
यह नए खिलाड़ी दोनों ही पार्टी की नींद उड़ा सकते हैं मध्य प्रदेश कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी वरद मूर्ति मिश्रा की वास्तविक भारत पार्टी इस बार पहली बार मैदान में उतरेगी ।
पिछले रविवार को राजधानी में इसका एक सम्मेलन हुआ जिसमें इस पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए 2 प्रत्याशियों की घोषणा तक कर दी। वरदमूर्ति ने जबलपुर जिले के बरगी और नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव विधानसभा सीट से उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया। गोटेगांव से नरसिंहपुर में सपा के जिलाध्यक्ष रहे हरिगोविंद झरिया , तो बरगी से भाजपा के अंत्योदय प्रकोष्ठ के जिला सह संयोजक रहे आशीष पटेल को उम्मीदवार बनाया गया है। श्री मिश्रा का कहना है कि उनकी पार्टी के 28 उम्मीदवार तय हो चुके हैं और अगले महीने तक आधिकारिक तौर पर सूची जारी कर दी जाएगी ।
वहीं कथावाचक संत देव मुरारी बापू मध्य प्रदेश से राजनीति में किस्मत आजमाने की तैयारी में है । उन्होंने राष्ट्रव्यापी जनता पार्टी नाम से राजनीतिक दल का गठन किया है । वे प्रदेश की 230 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। वैसे 2022 में यूपी चुनाव में उन्होंने कुछ उम्मीदवारों को उतारा था पर बाद में भाजपा से समझौता होने से पार्टी ने भाजपा को समर्थन दे दिया था।
सोमवार को विंध्य के चर्चित भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने नई पार्टी का ऐलान किया है। उसका नाम विंध्य पार्टी होगा। उन्होंने बताया कि विंध्य पार्टी के पंजीयन की प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है ,15 तारीख तक पार्टी का पंजीयन भी हो जाएगा। उन्होंने विंध्य के लोगों से आवाहन करते हुए कहा कि वे विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हो जाएं। विंध्य के लोग ही इस पार्टी से चुनाव लड़ेंगे। त्रिपाठी ने क्षेत्र की30 सीटों पर अपनी दावेदारी जताई है।
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर चुकी आम आदमी पार्टी इस बार बड़ी चुनौती है। कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भोपाल में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ एक रैली कर चुनावी बिगुल फूंक चुके हैं और प्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर चुके हैं। फिलहाल प्रदेश के कई इलाकों में स्थानीय निकाय चुनावो में वे अपने प्रदर्शन से उत्साहित हैं।
इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी भी सक्रिय हो गई है। ओवैसी की पार्टी धीरे-धीरे सक्रियता बढ़ा रही है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अलावा फरवरी में भीम आर्मी ने आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण के नेतृत्व में शक्ति प्रदर्शन कर प्रदेश की राजनीति में अपनी दस्तक देने का प्रयास किया है। पिछले चार-पांच महीनों में प्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन बड़े राजनीतिक आयोजन हुए हैं।
कौन कितना असरदार?
इन नए चुनावी दावेदारों में कौन कितना असरदार रहेगा कौन किसको कितना फायदा पहुंचाएगा या कौन किसका कितना नुकसान कराएगा यह भी कहना मुश्किल है।
जहां तक चुनावी आंकड़ों और गणित का सवाल है यह तय है कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच जीत हार में सीटों का अंतर 5 था, ऐसे आज छोटे और नए राजनीतिक दल प्रदेश की सियासी समीकरण को काफी हद तक प्रभावित करेंगे, और चाहे खुद न जीत सकें पर जीत हार का गणित बना या बिगाड़ देंगे। राजनीतिक पंडितों मुताबिक, इस साल प्रदेश की सरकार में बनाने में छोटे-छोटे राजनीतिक दलों की अहम भूमिका रहेगी।
नए सियासी समीकरण का आगाज
14 अप्रैल को डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर उनके जन्म स्थान महू (इंदौर) में आजाद समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और समाजवादी पार्टी एक बड़ा आयोजन करने वाली हैं। इस कार्यक्रम के दौरान मंच पर समाजवादी पार्टी नेता और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण एक मंच पर दिखाई देंगे।
क्या कहते हैं आंकड़े?
230 विधानसभा सीटों वाली मध्य प्रदेश में सामान्य वर्ग के लिए 148, अनुसूचित जनजाति के लिए 47 और अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। राज्य में करीब ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग मतदाता 48 फीसदी, अनुसूचित जनजाति वोटर 17 फीसदी और अनुसूचित जाति राज्य की आबादी का 21 फीसदी है। ऐसे में यदि इन जातियों का गठजोड़ छोटे दल निकाल लेते तो भाजपा, कांग्रेस का खेल बिगड़ने की संभावनाएं हैं।
,राज्य में पिछले कुछ महीनों से ओबीसी आरक्षण का मुद्दा गर्म है। इससे जुड़े कुछ मामले अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। आरक्षण के मुद्दों को लेकर ओबीसी वर्ग के मतदाता नाराज दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में यदि इन छोटे राजनीतिक दलों को ओबीसी का सहयोग मिल जाता है तो देश की राजनीतिक में नया भूचाल देखने को मिल सकता है। छोटे दलों की शुरूआती रैली के मुताबिक ये दल चुनाव मैदान में दलित आदिवासी और ओबीसी गठजोड़ बना कर उतर सकते हैं। ऐसे में यदि ये गठबंधन हुआ तो दलित आदिवासी सीटों के मामले में बुंदेलखंड की 25, ग्वालियर, चंबल 16 और विंध्य की 12 सीट समेत महाकौशल के करीब 35 सीटों पर नए राजनीतिक आंकड़े नजर आएंगे। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीतकर 40.09 फीसदी वोट हासिल किए थे और भाजपा ने 109 सीटों पर जीतकर 41 फीसदी वोट हासिल किए थे। वहीं राज्य में निर्दलीय दलों ने 4 सीटें जीतीं थी। इनका वोट प्रतिशत 5.8 था। इसमें बहुजन समाज पार्टी ने 2 सीट जीतकर 5 फीसदी वोट हासिल किए थे। हालांकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी लेकिन उस दौरान पार्टी का वोट प्रतिशत 1.3 था। इस चुनाव में नोटा को 1.4 फीसदी मत हासिल हुए थे। लेकिन, इन छोटे दलों ने 7 सीटों को जीतकर कुल 13.9 फीसदी वोट हासिल किए थे। 2018 के चुनाव में अनुसूचित जनजाति की रिजर्व 47 सीटों पर कांग्रेस ने 30 पर अपना कब्जा जमाया। जबकि बीजेपी महज 16 सीटों पर जीत हासिल कर सकी। वहीं अनुसूचित जाति की सीटों की बात करें तो 35 रिजर्व सीटों में से भाजपा ने 18 और कांग्रेस 17 पर विजयी हुई।
मध्य प्रदेश में एससी और एसटी सीटों का प्रभाव बहुत ज्यादा है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे 14 जिलों में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का जनाधार दिखाई देता है। सूबे के सतना, छतरपुर, टीकमगढ़, रायसेन, रीवा, दमोह, पन्ना, बालाघाट, सीधी, अशोकनगर, निवाड़ी में समाजवादी पार्टी का अच्छा खासा दबदबा है। वहीं बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों ने भिंड, ग्वालियर पूर्व, रामपुर बघेलान में 50 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। इसके अलावा देवताल, पौहारी, जोरा और सबलगढ़ में पार्टी को 40 हजार से अधिक वोट मिले थे। वहीं सतना, लहार, चंदेरी, गुन्नौर, अमरपाटन, सिमरिया और पथरिया में बसपा प्रत्याशी ने 30 हजार से अधिक वोट मिले थे। साफ है यदि छोटे दल इस साल विधानसभा चुनाव में एक साथ मिलकर चुनाव लड़ते है तो राज्य की दो प्रमुख पार्टी को इसका नुकसान हो सकता है।