बाघों पर संकट – देश में डेढ़ माह में 26 बाघों की मौत !

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नई दिल्ली// देश में 1 जनवरी से 11 फरवरी के बीच कुल 26 बाघों की मौत हुई है जो पिछले 3 वर्षों में साल की शुरुआत में बाघों की मौत का सबसे बड़ा आंकड़ा है। सबसे अधिक 9 मौतें मध्य प्रदेश में हुई । इसके बाद महाराष्ट्र में सात राजस्थान में तीन कर्नाटक में दो उत्तराखंड में दो आसाम बिहार और केरल में एक -एक बाघ की मौत हुई है।
कारणों की तलाश
फिलहाल सरकार की बाघ संरक्षण से जुड़ी योजनाएं इन मौतों के कारणों की तलाश कर रही है।आम तौर पर कोई अन्य कारण सिद्ध नहीं होने पर हर बाघ की मौत को अवैध शिकार माना जाता है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के पास बाघों की मौत के कारणों के आंकड़े सिर्फ 2020 तक के ही उपलब्ध हैं जो  बताते हैं कि 2020 में अवैध शिकार के कारण कम मौतें हुईं हैं। 2020 में अवैध शिकार के कारण सिर्फ सात बाघों की मौत हुई , जो 2018 की तुलना में काफी कम थे । 2018  में 34 बाघों की मौत हुई थी।।
पिछले साल इसी अवधि के दौरान 18 मौतें हुई थी और 2021 में 21 मौतें हुई थी। वही पूरे देश में  2020 से अब तक 380 बाघों की मौत हो चुकी है। सबसे अधिक बाघों की मौत 2021 में दर्ज की गई जब 127 बाघों की मौत हुई थी।
मध्य प्रदेश में ज्यादा मौतें?
मध्य प्रदेश में 2012 से 2022 के बीच लगभग 270 बाघों की मौत दर्ज की गई है यह आंकड़ा देश में सर्वाधिक है। इसके बाद महाराष्ट्र ( 184 मौत ) और कर्नाटक (150 मौत) का स्थान है।
दुनिया के बाघों की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी भारत में

फिलहाल दुनियाभर में साढ़े चार हजार बाघ हैं जिनमें से 2,967 भारत में बताए जाते हैं. प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ  द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आई यू सी एन) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में बाघों की संख्या 3200 हो गई थी और 2022 में इनकी संख्या 4500 है.
भारत दुनिया का सबसे अधिक बाघ की आबादी वाला देश है, जहां पूरी दुनिया के 70 फीसदी से ज्यादा बाघ पाए जाते हैं। 2010 में बाघों की संख्या  1,706थी जो  2018 तक बढ़कर 2, 967 पहुंच गई । यह एक उल्लेखनीय वृद्धि मानी जाती है। सरकार ने 2022के आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि देश में बाघों की आबादी 3000के आंकड़े को पार कर लेगी। भारत में बाघों सबसे ज्यादा मध्य भारत, पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट में पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में दो हजार से ज्यादा बाघ रहते हैं।
संरक्षण बजट में की गई है कमी
1973 में बाघों को विलुप्त होने से बचाने और उनके प्राकृतिक आवासों में एक व्यवहार्य आबादी सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने एक राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी ।हाल के वर्षों में इस कार्यक्रम पर होने वाले खर्च में कमी आई है, क्योंकि बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है , 2018-19 में जहां बाघों के संरक्षण पर 323. 44 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे वहीं चालू वित्त वर्ष में केंद्र द्वारा परियोजना पर मात्र 128 करोड खर्च करने का अनुमान है।

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