नई दिल्ली// रविवार को नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिल पुजारियों से एक सुनहरा राजदंड यानी सैंगोल प्राप्त करेंगे ।इसकी मीडिया में खासी चर्चा है।
सैंगोल हस्तान्तारण एक ऐतिहासिक परंपरा है इस तरह का समारोह चोल साम्राज्य के दौरान होता था जो एक राज्य से दूसरे राज्य को सत्ता हस्तांतरण को दर्शाता है
15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को नेहरू ने स्वीकार किया था सेंगोल
आज से 75 साल पहले इसी तरह के समारोह में 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को अपने ऐतिहासिक भाषण से कुछ घंटे पहले देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सैंगोल स्वीकार किया था जो अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित स्थानांतरण का प्रतीक था। आज़ाद भारत के प्रथम वायसराय श्री राजा राजगोपालाचारी ने नेहरू को वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन से सत्ता हस्तांतरण को दर्शाने के लिए चोल साम्राज्य की परंपरा के तहत सैंगोल को शामिल करने का सुझाव दिया था और नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद और अन्य लोगों की उपस्थिति में सैंगोल स्वीकार किया था। इस घटना को टाइम मैगजीन सहित कई समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया था लेकिन बाद में इसे भुला दिया गया यह सैंगोल प्रयागराज के इलाहाबाद संग्रहालय में पिछले 7 दशक से रखा हुआ है।अब सेंगोल को न्याय पूर्ण शासन के प्रतीक के तौर पर सदन के अध्यक्ष के आसन के समीप स्थापित किया जाएगा।
क्या और कैसा हैं सेंगोल?
सेंगोल संस्कृत शब्द “संकु” से लिया गया माना जाता है, जिसका अर्थ है “शंख”. शंख हिंदू धर्म में एक पवित्र वस्तु थी, और इसे अक्सर संप्रभुता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक था. यह सोने या चांदी से बना था, और इसे अक्सर कीमती पत्थरों से सजाया जाता था. सेंगोल राजदंड औपचारिक अवसरों पर सम्राट द्वारा ले जाया जाता था, और इसका उपयोग उनके अधिकार को दर्शाने के लिए किया जाता था. सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक भी माना जाता है. संसद भवन में जिस सेंगोल की स्थापना होगी उसके शीर्ष पर नंदी विराजमान हैं.
सेंगोल शब्द का तमिल में एक और अर्थ बताया जाता है जिसका अर्थ है नीति परायणता । इस चांदी से बनी सैंगोल पर सोने की परत चढ़ाई गई है और उसके शीर्ष पर न्याय के प्रतीक के तौर पर पवित्र नंदी विराजमान है सैंगोल उसी भावना का प्रतिनिधित्व करता है जिसका एहसास 14 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने किया था।
जब माउंटबेटन ने नेहरू से सप्ताह स्थानांतरण के प्रतीक समारोह के बारे में पूछा तो राजगोपालाचारी जी से चर्चा की गई, राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु के चंद्रपुर जिले में शैव संप्रदाय के धार्मिक मठ तिरुवदुथुराई अधीनम से संपर्क किया था। अधीनम के प्रमुख में चेन्नई के जौहरी बुम्मिडी बंगारू चेट्टी को सेंगोल( 5 फुट लंबा) तैयार करने का जिम्मा सौंपा सा था। नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर सैंगोल बनाने वाले 96 वर्षीय बुम्मिडी एथिराजुलू और 88 वर्षीय बुम्मिडी सुधाकर शिल्पकार को भी समारोह में शामिल होंगे।