दिग्विजय सिंह का दौरा बदलेगा तस्वीर ?

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इटारसी / नर्मदापुरम//आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस खासी सक्रिय है। इस बार वह लगातार उन सीटों पर फोकस कर रही है जिन पर कांग्रेस पिछले चार-पांच चुनाव से हार झेलती आ रही है। वरिष्ठ नेताओं के दौरे इस तरह के क्षेत्र में लगातार जारी हैं। कहा जा रहा है कि इसी तारतम्य में पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य सभा सदस्य दिग्विजय सिंह गुरुवार को नर्मदा पुरम और इटारसी आ रहे हैं, वे कार्यकर्ताओं से चर्चा करेंगे और पार्टी की स्थिति को समझने और जानने का प्रयास करेंगे।

 जहां तक नर्मदापुरम( होशंगाबाद) जिले का सवाल है यहां संगठन कमजोर नहीं बल्कि ध्वस्त है और इसके लिए भोपाल मैं बैठकर जिले को अपनी जागीर मानने वाले नेता जिम्मेदार हैं । पिछले कई दशकों से उन्हीं नेताओं की पसंद के लोगों को यहां उम्मीदवार बनाया जाता रहा और यह बात खुलकर कही जाती रही है कि इन नेताओं का भाजपा के सबसे रसूखदार परिवार से गहन संबंध होने के कारण यहां कांग्रेस उनके सामने कोई मजबूत प्रत्याशी देने से बचती रही है। 

 बात कड़वी है पर सच है 

यह बात इस क्षेत्र के राजनीतिक गलियारों में ही नहीं आम लोगों में भी खुलकर कही जाती है कि भाजपा के बगीचे से ही  कांग्रेस की टिकट तय होती है। इस बार भी ऐसा ही होने की संभावना है, क्योंकि जो फार्मूला बताया जा रहा है जिसमें उम्मीदवार के चयन में स्थानीय संगठन और प्रभावशाली नेता की महत्वपूर्ण भूमिका होगी तो ऐसे में कोई बदलाव होगा ऐसा नहीं लगता। क्योंकि हाल ही में स्थानीय संगठनों में जो लोग पदाधिकारी बनाए गए हैं वह पार्टी के बजाय उन्हीं नेताओं की पसंद और निष्ठा वाले हैं। इसीलिए मंडलम की ओर से वही नाम जाएंगे जिन्हें यह नेता चाहेंगे।

राष्ट्रवादियों की रहती है बल्ले-बल्ले

पिछले कई बार से कांग्रेसी इलाके में चुनाव हार रही है इसके लिए कांग्रेसियों की भूमिका ही महत्वपूर्ण होती है। भीतरघात( यहां तक कि पैसे लेकर रातों-रात निष्ठा बदलने के किस्से चुनाव के बाद तक चर्चाओं में रहते हैं पिछले चुनाव में लिफाफे की चर्चा तो आज तक याद की जाती है) एक स्थायी रोग है, पर चुनाव के बाद भी इस तरह के तत्वों पर कभी कोई एक्शन पार्टी की ओर से कभी नहीं लिया गया, उल्टे उन्हें किसी ना किसी तरह से पुरस्कृत किया गया ,

 हाल ही के नपा चुनाव में कांग्रेस के भोपाल में बैठे वरिष्ठ नेताओं की जो भूमिका रही, माना जा रहा है कि उसके कारण इटारसी नगर पालिका पर कांग्रेस काबिज होते होते रह गई।  इन नेताओं ने जिन अपने चहेतों को पार्षद के टिकट दिलवाए उनमें से कुछ तो जीते ही नहीं जो जीते तो  उन्होंने कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ खुलकर मतदान किया था और उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। वहीं इटारसी के एक मैदान का नाम सावरकर के नाम पर रखे जाने के मामले में भी पार्टी की लाइन से हटकर भाजपा का समर्थन करने वाले आज भी कांग्रेस के नेता बने हुए हैं और तो और भाजपा उन्हें राष्ट्रवादी बता रही है।

अब  सवाल यह है कि दिग्विजय सिंह जी जब स्थानीय नेताओ और कार्यकर्त्ताओं से  से चर्चा करेंगें तो यह बातें उनके सामने आ सकेंगी ? और ऐसा होगा तभी दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं का दौरा और मेहनत इस तस्वीर को बदल सकेगा ।… और तस्वीर बदलेगी तभी कांग्रेस यहां जीत सकेगी।

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